रविवार, 13 सितंबर 2015

आखिर लोकतंत्र जनता के लिए है या जनता के करों से वेतन/भत्ते लेने वाले कर्मचारियों के लिए ?

वैसे तो देश भर का यही हाल है मगर यदि केवल उत्तराखंड की बात करें तो उत्तराखंड में सरकारी वेतन/भत्ते लेने वाले कर्मी वेतन-भत्ते और अन्य मांगों को लेकर आये दिन हड़ताल पर रहते हैं और सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों की सांठ-गांठ के कारण इनकी मांगे पूरी भी हो जाती हैं, मगर राजस्व घाटा से लेकर जानमाल तक खामियाजा आम जनता को भुगतना पढ़ता है, वक्त आ गया है कि इस विषय पर चर्चा हो आखिर लोकतंत्र जनता के लिए है या जनता के करों से वेतन/भत्ते लेने वाले कर्मचारियों के लिए ? वक्त आ गया है कर्मचारियों की जायज/नाजायज मांगों को लेकर होने वाली हड़तालों पर त्वरित रोक लगाई जाए और तमाम कर्मचारी संगठनों की मान्यता रद्द कर प्रदेश में केवल एक ही कर्मचारी संगठन को मान्यता दी जाए | कर्मचारी संगठन की किसी भी प्रकार की मांग को पूरा किया जाय या नहीं उसके लिए जनता से हर पांच साल में एक बार मतदान करवाया जाए और 80% मत यदि मांग पूरी करने के पक्ष में पढ़ते है तभी मांग पूरी की जाए वर्ना ख़ारिज की जाए | तभी प्रदेश और प्रदेश की जनता का विकास हो सकता है और यही विकल्प अन्य राज्यों और केंद्रीय कर्मचारियों के लिए भी अपनाया जाए |
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वर्ना यही देखने को मिलता रहेगा नर्सें हड़ताल पर, शिक्षक हड़ताल पर, डाक्टर हड़ताल पर, पटवारी हड़ताल पर, ग्राम विकास अधिकारी हड़ताल पर, आशा कार्यकर्ती हड़ताल पर, भोजनमाता हड़ताल पर, शिक्षा मित्र हड़ताल पर, नरेगा कर्मी हड़ताल पर, राजस्व अमीन हड़ताल पर, आंगनबाड़ी कार्यकर्ती हड़ताल पर, सचिवालय कर्मी हड़ताल पर,  जल-संस्थान कर्मी हड़ताल पर, बिजली कर्मी हड़ताल पर, सफ़ाई कर्मी हड़ताल पर, फार्मेसिष्ट हड़ताल पर, बैंक कर्मी हड़ताल पर, जंगलात कर्मी हड़ताल पर, उपनल कर्मी हड़ताल पर, युवा कल्याण कर्मी हड़ताल पर ऐसा कोई कर्मचारी संगठन है जो पिछले 15 सालों में हड़ताल पर न गया हो ? जिसने स्व:हित के लिए नहीं प्रदेश की जनता और प्रदेश हित के लिए हड़ताल की हो ?
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#जय_हिन्द
#गर्व_से_कहो_हम_भारतीय_उत्तराखंडी_हैं
Bhargava Chandola - भार्गव चन्दोला​

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