सोमवार, 21 जुलाई 2014

सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता में त्वरित सुधार का एकमात्र विकल्प


राज्य सरकार या केंद्र सरकार सरकारी शिक्षा में अगर सच में सुधार करना चाहती है तो सभी सरकारी लोकसेवकों, अधिकारीयों, कर्मचारियों एवं मानदेय लेनेवाले जनप्रतिनिधियों को उनके नौनिहालों को अपने तैनाती स्थल के नजदीकी सरकारी स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य करे, मैं दावे से कह सकता हूँ एक महीने के भीतर सरकारी शिक्षा में सुधार के परिणाम देखने को मिलेंगे इतना ही नहीं एसा करने से पहाड़ों से एवं देहातों से शहरों की तरफ हो रहे पलायन पर भी रोक लगेगी | 

वर्ना शिक्षा मंत्री मंत्रीप्रसाद नैथानी, मुख्यमंत्री हरीश रावत, मानव संसाधन मंत्री #Smriti Zubin Irani, पी.एम्. #Narendra Modi ji चाहे जितना जोर लगा लें, चाहे जितनी योजनायें लागू कर लें, सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधर सकती है, इतना ही नहीं मध्याहन भोजन की गुणवत्ता भी तभी सुधर सकती है जब उसी भोजन को सरकारी कर्मचारी, लोकसेवक भी खाएं नहीं तो कीड़े मकोड़े मिलने की ख़बरें तो आये दिन मिलती रहेंगी |

केवल उत्तराखंड राज्य की बात करें तो उत्तराखंड में जनता के करों से सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को हर साल 50 अरब रूपये वेतन के रूप में प्रतिवर्ष दिया जा रहा है, मगर नौनिहालों को फिर भी गुणकारी एवं उपयोगी शिक्षा नहीं मिल पा रही है, सरकारी स्कूली शिक्षा लगभग मृत होने के कारण अभिभावक अपने नौनिहालों को निजी स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हैं, निजी स्कूलों द्वारा पग-पग पर छात्रों एवं अभिभावकों का मानसिक,शारीरिक एवं आर्थिक उत्पीड़न किया जाता है | सरकार की रमसा, सर्वशिक्षा, मध्याहन भोजन, पी.पी.पी. माडल आदि सभी योजनायें मात्र ठेकेदारी प्रथा को जन्म देकर कुछ लोगों की जेबें गर्म करने का साधन मात्र बन रही हैं | अगर त्वरित रूप से राज्य सरकार ने सरकारी शिक्षा में सुधार करते हुए सभी सरकारी लोकसेवकों, अधिकारीयों, कर्मचारियों एवं मानदेय लेनेवाले जनप्रतिनिधियों को उनके नौनिहालों को अपने तैनाती स्थल के नजदीकी सरकारी स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य नहीं किया तो आने वाले समय में इसके भयावह परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं| 

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