गुरुवार, 22 मई 2014

"अनुभव बोलता है"

शहर की गलियों में घूमते हुए मैंने देखा एक नागरिक कढ़ी धूप में पशीने से लथपथ हो रखा है और वो छाया की तलाश कर रहा है, छाया की तलाश करते करते वो एक चौबाटे पर पहुंचा और रुक गया | उस मोहल्ले में कुछ आवारा कुत्ते रहते थे जिनका दाना पानी उस मोहल्ले के लोगों द्वारा चलता था मोहल्ले के कुत्तों को लगा वो नागरिक जो पशीने से लथपथ है उनको मिलने वाले भोजन के लिए वहां आया है और जोर-जोर से उस नागरिक को देखकर भोंकने लगे | कुछ देर तक पशीने से लथपथ नागरिक शांत खड़ा होकर उन आवारा कुत्तों को प्यार से पुचकारता रहा, आवारा कुत्ते कुछ देर भोंकने के बाद फिर अपनी अपनी गली के घरों की तरफ भोजन की तलाश में निकल पढ़े | अब वो नागरिक कुछ देर सुकून से बैठा और अपना पशीना पोछने के पश्चात् आगे निकल गया | मैं इस घटनाक्रम को काफ़ी देर से देखता रहा और मेरे मन में ख़याल आया भीड़ की कोई सोच नहीं होती है, भीड़ चाहे मनुष्यों की हो चाहे पशुओं की उसे तो बस हल्ला काटना है और अपने अपने मार्गों पर चल देना है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें