शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

ये कैसा लोकतंत्र ? जिसमें जनता को बना दिया न्यायपालिका,कार्यपालिका एवं विधायिका का गुलाम आखिर जनता के हाथ में है क्या ?

ये कैसा लोकतंत्र ? संविधान बनाने वालों ने सबसे बड़ा धोका जनता को दिया है आखिर संविधान बनाते समय उन्होंने जनता के हाथों में क्या अधिकार दिया है ?  न्यायपालिका, कार्यपालिका व् विधायिका  के हाथों जनता को गुलाम बना कर रख दिया गया | अगर संविधान में ग्राम विकास अधिकारी, शिक्षक, डाक्टर, इंजीनियर, लोकसेवक, कलर्क, चपरासी, वैज्ञानिक, न्यायाधीस, डी.एम्.,एस.डी.एम् सबकी जवाबदेही जनता के प्रति होती और सभी की चरित्र रिपोर्ट भरने का अधिकार आम जनता की खुली सभा में जनता को होता, प्रत्येक कर्मचारी की हर तीन माह में समीक्षा होती, और उसी के अनुरूप जनता सरकारी कर्मचारी को प्रोत्साहित और सजा देती ऐसे अधिकार जनता के हाथों में होते तो न तो भ्रष्टाचार पनपता और न ही कोई कामचोरी कर पाता ! मगर संविधान में जनता को तो केवल ठेंगा दे रखा है फिर कहाँ से सही काम होंगे ? सभी कर्मचारी जो कि जनता के दिए करों से वेतन, भत्ते और सुविधाएँ लेते हैं वो जनता के प्रति नहीं अपने उच्च अधिकारी के प्रति जवाबदेह होते हैं और वो अपने उच्च-अधिकारीयों से मिलकर जनता के धन को ठिकाने लगाना, जनता का शोषण करना, माफियाओं को लाभ पहुँचाना, अवैध कब्ज़ा करवाना, अवैध कारोबारियों को लाभ पहुँचाना जैसे कार्य मात्र इसलिए कर पाते हैं क्योंकि उनकी जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है | इसलिए सब मिलकर आम आदमी का शोषण करते हैं | संविधान में संसोधन और कर्मचारीयों की जवाबदेही जनता के प्रति सुनिश्चित होनी आवश्यक है तभी देश के आम आदमी का शोषण रोका जा सकता है |

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