शनिवार, 14 सितंबर 2013

“नगाड़े खामोश क्यों हैं”


“नगाड़े खामोश क्यों हैं”

गिर्दा आज हमारे बीच नहीं हैं देहरादून के टाउनहाल में उनके जाने के तीसरे वर्ष पर उनको याद किया गया दो बजे से आठ कब बज गए कुछ पता ही नहीं चला गिर्दा को याद करते हुवे गिर्दा की संगी-साथी राजीव लोचन शाह जी, शमशेर सिंह बिष्ट जी, शेखर पाठक जी, जनकवि अतुल जी, नरेन्द्र सिंह नेगी जी, कमला पन्त जी, इन्द्रेश जी, रानू बिष्ट-ओबेराय जी, त्रेपन सिंह जी, समीर जी, प्रवीन कुमार भट्ट जी, पांगती जी आदि ने गिर्दा को छ: घंटे तक जिस बक-बक के साथ हमारे बीच उपस्थित किया वो काबिले तारीफ था गिर्दा के बारे में जो नहीं भी जानते थे इन लोगों ने उनको गिर्दा के बारे में विस्तार से बता कर सराबोर कर दिया| मैं ब्यक्तिगत तौर पर इस कार्यकर्म के संयोजनकर्ताओं का आभार प्रकट करता हूँ की उन्होंने न सिर्फ गिर्दा को याद करने के लिए हमे एकत्रित किया बल्कि गिर्दा को याद करते करते आई.सी.यू. में जा चुके उत्तराखंड प्रदेश के लिए गहन चिंतन करने के लिए सभी को मजबूर भी किया…

आज पता लगा जब शेखर पाठक जी ने बताया गिर्दा केवल मुहँ से कविता नहीं गाते थे, केवल मुहं से गीत नहीं गाते थे… गिर्दा शरीर के अंग-अंग से गाते उछलते अठखेलियाँ करते हुवे गाते थे… काश उत्तराखंड के लोकसेवकों और निठल्ले विधायक,मंत्रियों ने कभी गिर्दा, नरेन्द्र सिंह नेगी के ही गीतों का संज्ञान ले लिया होता तो आज ये उत्तराखंड… खंड…खंड नहीं होता… आज उत्तराखंड की धरती पर मासूम जिन्दगीयां बेमौत नहीं मारी जाती… ये पहाड़ यूं न दरकते, ये ग्लेशियर यूं समाप्त होने के कगार पर न पहुंचते, ये नदियाँ विलुप्त होने के कगार पर न पहुँचती….

उत्तराखंड की जनता का दुर्भाग्य है की उनकी आँख में मोतियाबिंद पड़ा हुवा है अपने बीच नरेन्द्र सिंह नेगी, शेखरपाठक, शमशेर सिंह बिष्ट, राजीव लोचन शाह, समर भंडारी, इन्द्रेश मैखुरी, हरीश आर्य, अरण्य रंजन, अनिल स्वामी, मुन्ना सिंह चौहान, चन्द्रशेखर करगेती, दीप पाठक, कमला पन्त, पी.सी.तिवारी, भार्गव चन्दोला* आदि प्रकृति प्रेमी, दूरदृष्टि रखने वाले, इमानदार मगर संसाधनविहीन लोगों के होते हुवे.. भ्रष्ट कांग्रसी या भाजपाई देल्ही के आदेश पर चलने वाले भ्रष्ट,अदूरदृष्टि, तिजोरी भरने वाले नेताओं को विधानसभा या लोकसभा भेजती है तो उत्तराखंड का ये हाल तो होना निश्चित ही था… जनता अपनी आखों के मोतियाबिंद का आप्रेशन करवाकर सही लोगों को विधानसभा भेज देती तो उत्तराखंड की ये दुर्गति न होती मगर…

क्या जनता की जिम्मेदारी नहीं बनती है की वो खोजे सही लोगों को और तै करे हम अपने छेत्र से दलाल को नहीं सही ब्यक्ति को चुनकर भेजेंगे… ?

कब आएगी आम जनता में ये जागरूकता ?

गिर्दा तुम तो चले गए हमारे दिलों में रच बस गए … अब कौन इनका मोतियाबिंद का आपरेशन करेगा ? कौन इनको वोट का मोल देश का मोल इस माटी का मोल बता कर उदेलित करेगा की जागो उठो ओ मेरे लाल…. गिर्दा कौन इन्हें जगायेगा ? गिर्दा कौन इन्हें जगायेगा…? अंत तक पहुंचते पहुंचते मन उदास हो गया था गले में गिर्दा पर लिखी गई एक श्रोता की कविता गिर्दा को याद करते करते गले में रुन्दन का भाव पैदा कर गई…गिर्दा तुम आज अगर हमारे बीच साक्षात् होते तो शायद हम तुम्हें याद न करते न इतना भाव मन में होता…. गिर्दा तुम गए तो दिलों में बस गए मन में बस गए….

भारत में एमरजेंसी के दौरान… चारों तरफ दमन हो रहा था हालात अंधेर नगरी चौपट राजा वाले थे… उसी दौरान गिर्दा ने “नगाड़े खामोश क्यों हैं” के मंच से ये पंक्तियाँ न सिर्फ अपने होंठों से कही बल्कि गिर्दा जैसे उनके संगी साथी बताते हैं अपने शरीर के अंग-अंग से कहीं…

                कि राख की बात क्या ?
                कि राख की करामत क्या ?
                कि राख का मनुष्य लाख का भी है,
                
                कि राख का मनुष्य खाख का भी है,

                कि राख को भी खाख और खाख को भी लाख

                राख का मनुष्य कर सकता है…

                कि सोता है तो गनेलों की तरह,

                कि जागता है तो ब्रह्माण्ड हिला देता है…


उस दौर में गिर्दा ने इन पंक्तियों को गाकर सोये मनुष्य को जागने को मजबूर कर दिया और उन्हें जगाकर जोश पैदा कर दिया|

आज वही परिस्थति है हमारे देश और हमारे राज्य उत्तराखंड की है आज भी “अंधेर नगरी चौपट राजा” ही हो रखा है| फिर से नगाड़ों का बजने का समय आ गया है… फिर से मनुष्य का जागने का समय आ गया है… फिर से खाक को लाख करने का समय आ गया है..

*अपना नाम इसलिए जोड़ रहा हूँ उनठलुओं से तो ठीक ही निकलूंगा |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें