सोमवार, 30 सितंबर 2013

फेसबुकी बारात में बैंडबाजा


फेसबुकियों के भरोसे अगर कोई अपनी बारात निकाल दे और सारे निमंत्र्ण इवेंट बनाकर उसके माध्यम से भेज दे और किसी को भी दुसरे माध्यम से निमंत्र्ण न भेजे तो ? आपको पता है क्या होगा? 

जहाँ तक मुझे लगता है, दूल्हे के अलावा बरात में केवल बैंड वाले ही रह जायेंगे ? मित्रों इसलिए फेसबुक में मौजूद किसी भी इवेंट में जाने न जाने की स्वीकृति सोच समझ कर देनी चाहिए ताकि कार्यक्रम आयोजित करने वाला मुगालते में न रहे और उसे परेशानी भी न हो| 

आशा है सभी फेस्बुकिये संवेदनशीलता दिखायेंगे| नहीं जा सकते हो समय नहीं है या कोई और बात है तो साफ़ अस्वीकार कर दो स्वीकार करके न जाना तो फेसबुक मित्रों की विस्वसनीयता पर प्रश्नचिन लगा देता है|

रविवार, 29 सितंबर 2013

"मैंने घर के आँगन में बोया था एक बीज"

मैंने घर के आँगन में बोया था एक बीज,
रोज मैं उसे सींचता,
कुछ समय-बाद उसमें अंकुर फूट पढ़ा,
तब मुझे अत्यंत प्रश्नता हुई,
मैं उसकी और देखभाल करने लगा,
समय बीतते-बीतते वह अंकुर से पेड़ बनने लगा,
उसकी शाखायें निकलकर खूब फैलने लगी,
मैं करने लगा इंतजार,
कब उसमें फूल खिलेंगे?
मैं उन्हें निहारा करूँगा?
मगर उसमें फूलों की जगह कांटे उभर आये,
जो कि हर समय मुझे भेद जाते,
मुझे उन काँटों का भेदना भी अच्छा लगने लगा,
क्योंकि वो पेड़ मैंने अपने हाथों से बोया था|
अब ये चुभन सहन नहीं होती मुझसे,
अब मुझे इन काँटों से मुक्ति चाहिए!
अब ये चुभन सहन नहीं होती मुझसे|
******(C) भार्गव चन्दोला, अप्रकाशित, 1997 में रचित*****

बुधवार, 18 सितंबर 2013

उत्तराखंड में आपदा का माल डकारा जा रहा है

उत्तराखंड में आपदा का माल डकारा जा रहा है 

धन्यवाद बन्दूक जी आप वहां मौजूद नहीं होती तो जनता को तो कानों कान खबर भी नहीं होती | चैम्पियन भाई कह रहे हैं पटाखों से लगी होगी चोट चैम्पियन भाई तुसी ग्रेट हो | हरक सिंह भाई कह रहे हैं मैं उस समय कमरे में था हरक भाई के सीने में दर्द था या कमरे में अलग से कोई और पार्टी मना रहे थे | जिन विवेकानन्द खंडूरी जी को गोली लगी उनके लिए लगातार सुनने में आ रहा है वो भले इन्सान थे विवेकानंद भाई आप ने भी आपदा की संवेदनशीलता को नहीं समझा कैसे भले इंसान हैं ? यशपाल आर्य, इन्दिरा हृदयेश बाल बाल बची आखिर दिग्गज मंत्री ही कैसे बाल-बाल बच जाते हैं ? बहरहाल सब हमारी गलती है हमारा स्वाद भी तो आप जैसे ही लोग होते हैं ईमानदार लोगों को तो लत्या के भगा देते हैं और भ्रष्ट लोगों का फूल मालाओं से स्वागत करते हैं भले पीछे से उसी के नाश होने की बद्दुवा मांगते रहते हों.... डी.जी.पी. साहब आप जनता के करों से अपना परिवार पालते हैं आपकी तो स्थाई नौकरी है आप क्यों उत्तराखंड पुलिस को केंद्र की सी.बी.आई. का तोता बना रहे हैं ये समझ से परे है आपने अपने नाम सत्यव्रत यानी सत्य का अनुशरण करने वाला की परिभाषा ही बदल कर रख दी है आखिर क्यों और किस लिए आप इतने दबाव में कार्य कर रहे हैं ? आखिर गोलिबाजों,भ्रस्टाचारियों को सलाखों के पीछे न डाल पाने में आपकी कौन सी मज़बूरी है ?

धन्य हो गए हम पूर्व हाईकोर्ट मुंबई जज, वर्त्तमान मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार श्री विजय बहुगुणा जी आपके शाशनकाल में प्रदेश में जो अराजकता आपके सहपाठी कर रहे हैं उससे इतना तो साफ़ हो ही गया है कि आपके द्वारा किस प्रकार जज रहते हुवे पीड़ितों के साथ न्याय किया जाता रहा होगा | आपके इस दमन के लिए आपको मिलते हैं १०० में से १०० नंबर.... और यदि मैं गलत हूँ ? तो चाहे कांग्रेश की सरकार ही क्यों न गिरती हो मगर हिमालय पुत्र हे.न.ब. की औलाद होने का अहसास करवाओ.... तुम नहीं करवाओगे तो हम तो आने वाले समय में करवा ही देंगे.... सब जनता की गलतियाँ हैं गाली भी और फूलमालाओं से सम्मान भी डूब मरो.... जो ऐसा दोहरा चरित्र अपनाते हैं....

रविवार, 15 सितंबर 2013

राहुल गाँधी जिन्दाबाद, नरेन्द्र मोदी जिन्दाबाद, अरविंद केजरीवाल हाय-हाय

राहुल गाँधी जिन्दाबाद, नरेन्द्र मोदी जिन्दाबाद, अरविंद केजरीवाल हाय-हाय



1. क्या देश की दो सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी भा.ज.पा. व् कांग्रेस धर्म आधारित राजनीति करके समाज को बाँटने का काम नहीं कर रही हैं ? 

2. क्या भा.ज.पा. व् कांग्रेस धर्म और जाती आधारित सम्मेलन करके मानव समाज की एकता को नहीं तोड़ रहे हैं क्या ये मानव समाज के लिए घातक नहीं है ?

3. क्या भा.ज.पा. व् कांग्रेस ऐसा अपनी अकर्मण्यता और अपने भ्रस्टाचार को छुपाने और जनता को गुमराह करके वोट पाने के लिए नहीं करते हैं ? 

4. क्या भा.ज.पा. व् कांग्रेश जन-कल्याण छोड़ समाजों में धर्मान्धता की भावना जगाकर बांटने का काम नहीं कर रहे हैं? 

5. क्या भा.ज.पा. व् कांग्रेस ने अब तक कभी जनता के साथ मिलकर या जनता की सहमति से नीतियाँ या कानून बनाये हैं ? 

6. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस जनता के बीच जनता के साथ शिक्षा की गुणवत्ता और समाधान के लिए सम्मेलन नहीं करवाती है? 

7. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस विज्ञानं की उन्नति और विकास के लिए जनता के बीच जाकर सम्मेलन नहीं करवाती है ?

8. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस महिलाओं की सुरक्षा, और सामाजिक सम्मान के लिए सम्मेलन नहीं करवाती है ?

9. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस बच्चों के शोषण की समस्या, समाधान और सुरक्षा पर सम्मेलन नहीं करवाती है ?

10. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस सीमाओं की समस्या, सुरक्षा और समाधान के लिए जनता के बीच सम्मलेन नहीं करवाती है ?

11. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस कृषि, किसानों की समस्या, सुरक्षा और समाधान के लिए सम्मेलन नहीं करवाती है ?

12. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस नागरिक समस्या, सुरक्षा और समाधान के लिए जनता के बीच जाकर सम्मेलन नहीं करवाती है? 

13. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस सड़क, बिजली, पानी की समस्या और समाधान के लिए जनता के बीच जाकर सम्मेलन नहीं करवाते हैं ?

14. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस रिश्वतखोरी और घटिया निर्माण की समस्या और समाधान के लिए जनता के बीच सम्मेलन नहीं करवाते हैं? 

15. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस काला धन कहाँ कितना और वापसी कैसे पर जनता के बीच जाकर सम्मेलन नहीं करवाते हैं ? 

16. क्या भा.ज.पा. व् कांग्रेस डर होता है की ऐसे सम्मेलन करेंगे तो जनता जागरूक हो जाएगी और ये जल्दी से फिर भ्रस्टाचार नहीं कर पायेंगे? 

17. क्या भा.ज.पा. व् कांग्रेस गरीब को गरीब को हमेशा दीन-हीन ही बनाकर रखना चाहते हैं ?

18. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस ने भ्रूण हत्या पाप है के लिए जनता के बीच जाकर सम्मेलन नहीं करवाये? 

19. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस ने चिकित्सा समस्या और समाधान के लिए जनता के बीच जाकर सम्मेलन नहीं करवाये ?

20. क्यों भा.ज.पा. व् कांग्रेस सूचना के अधिकार को राजनीतिक पार्टियों पर लागू करने का विरोध कर रहे हैं? 

आपके जवाब/यानि आपके कमेन्ट ही आपकी जागरूकता का प्रमाण देंगे...



शनिवार, 14 सितंबर 2013

लोकतंत्र की हत्या करने पर उतारू उत्तराखंड सरकार और लोकसेवक

लोकतंत्र की हत्या करने पर उतारू उत्तराखंड सरकार और लोकसेवक 

क्या हम पाकिस्तान बांग्लादेश जा रहे थे ? क्या हम लाठी-डंडों, बन्दुक, बमों को लेकर जा रहे थे ? नहीं | फिर क्यों उत्तराखंड सरकार ने पुलिस के माध्यम से जबरन हमारी पद यात्रा को रुकवा दिया ? हम शांतिपूर्वक सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषय को लेकर पद यात्रा निकालकर जा रहे थे ताकि आम जनता पर्यावरण के महत्वा को समझे | पूर्व-सूचना के बावजूद हिमालय दिवस के अवसर पर आम आदमी पार्टी उत्तराखंड की पर्यावरण जनजागरण पद यात्रा को पुलिस ने जबरन रोका | भारत में आखिर ये कैसी स्वतंत्रता है ? क्या हम जिन मुख्यमंत्री, राज्यपाल महोदय के तमाम खर्चों को अपने ऊपर ढोह रहे हैं उनसे अपने राज्य का कैसा हो विकास ? कैसे हो सुरक्षा ? कैसे हो पर्यावण संतुलित निर्माण ? कैसे हों रोजगार के मोडल ? जैसे संवेदनशील विषय पर शांतिपूर्वक सुझाव पत्र सोंपने भी नहीं जा सकते हैं ? हम इस पद यात्रा को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल महोदय के पास उत्तराखंड के नवनिर्माण के लिए 10 बिन्दुओं का सुझाव पत्र सोंपने जा रहे थे मगर पुलिस द्वारा हमें पद-यात्रा स्थल पर ही रोक दिया गया फिर जब हमारे दो साथी सिटी मजिस्ट्रेट के पास स्वीकृति के लिए सुझाव पत्र को लेकर गए तो सिटी मजिस्ट्रेट ने हमें पर्यावरण जनजागरण हेतु पद यात्रा निकालने की स्वीकृति देने से ही मना कर दिया | 

क्या यही लोकतंत्र है ? जब हम लोग पद-यात्रा स्थल पर ही धरने पर बैठ गए तो दो घंटे बाद सिटी मजिस्ट्रेट गिरीश गुणवत सुझाव पत्र लेने धरना स्थल पर पहुंचे | उनसे हमने कहा क्यों नहीं हमें जाने दिया गया ? तो सिटी मजिस्ट्रेट गिरीश गुनवंत जी ने कहा आपके द्वारा सूचना नहीं दी गई थी इसलिए हम आपको यात्रा करने की सहमती नहीं दे सकते हैं | 

जब सिटी मजिस्ट्रेट को अवगत करवाया गया की हमारे द्वारा शनिवार यानि दो दिन पहले ही सरकारी अधिकृत मेल एड्रेस पर सूचना दे दी गयी थी तो सिटी मजिस्ट्रेट ने जो जवाब दिया उसको सुनकर हम भौचक्के रह गए | 

सिटी मजिस्ट्रेट का कहना था उत्तराखंड सरकार कंप्यूटर फ्रेंडली नहीं हुई है आपको स्वयं आकर सूचना देनी चाहिए थी ईमेल का सरकार और लोकसेवक संज्ञान नहीं लेते हैं | 

अब आप स्वयं लगा सकते हैं उत्तराखंड की सरकारी मशीनरी और उत्तराखंड सरकार की सूचना तकनीक की प्रणाली कितनी आधुनिक है ? यही कारण है की केदारनाथ आपदा की सूचना सरकार को चार दिन बाद मिली व् आपदा में मारे गए मानवों का आंकड़ा आज तक भी उत्तराखंड सरकार के पास नहीं है फिर अन्य प्राणी जीवन की बात करना ही बेमानी होगा | बहरहाल हमारे द्वारा सिटी मजिस्ट्रेट को निम्न 10 बिन्दुवों का सुझाव-पत्र सोंपा गया आगे देखते हैं उत्तराखंड सरकार उनका क्या और कैसे संज्ञान लेती है ?

"पर्यावरण संतुलित एवं सम्पूर्ण उत्तराखण्ड के नवनिर्माण हेतु विकास का माडल"
महोदय उत्तराखंड सरकार के पास इस समय प्रयाप्त बजट है जिससे उत्तराखंड का नव-निर्माण प्राकृतिक संतुलन के साथ-साथ जनहितकारी भी किया जा सकता है इसके लिए न्याय पंचायत स्तर पर मूलभूत सुविधाओं और रोजगार का मॉडल तैयार करना होगा |
महोदय उत्तराखंड में कुल 670 न्याय पंचायतें हैं जिसके अंतर्गत 15 से 20 ग्राम पंचायतें आती हैं| सरकार को प्रत्येक न्याय पंचायत में एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा ताकि स्थानीय जनता को पर्यावरणीय संतुलित सुविधाएँ और रोजगार के साधन उपलब्ध हो सकें इसके लिए आपको निम्न 10 बिन्दुवों का सुझाव पत्र प्रेषित है: 

1. शिक्षा का मॉडल 
स्कूली शिक्षा, कृषि शिक्षा, योग एवं संस्कृति शिक्षा, आयुर्वेदिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, प्रोधोगिकी शिक्षा, तकनिकी शिक्षा, आपदा प्रबंधन शिक्षा, आत्म रक्षा शिक्षा, एवं खेल शिक्षा का समायोजन किया जाये और प्रदेश में जगह जगह स्थापित किये गए अनावश्यक स्कूल/कालेजों आदि को बंद कर आदर्श शिक्षा परिसर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर तैयार किया जाये|

2. चिकित्सा का मॉडल 
एलोपेथी, आयुर्वेदिक, होमोपेथी का समायोजन कर आधुनिक सुविधा यूक्त चिकित्सालय प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित किया जाये|

3. रोजगार का मॉडल
स्थानीय उत्पादन उद्योग, शब्जी उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, फलोत्पादन (सेब, अखरोट, माल्टा, आडू, खुमानी, बुरांश, पुलम, चोलू, हथ-करघा उद्योग, नाशपाती, आम, लीची, अमरुद, हिंसर, बुरांश, काफल, अन्नार, टिमरू आदि हेतु जलवायु मौजूद), दुग्ध डेरी, मधु-पालन, काष्ठ-कला, कंडी उद्योग, भेड़ पालन, साहसिक एवं प्राकृतिक खेल, योग-ध्यान केंद्र, बिक्री केंद्र, पर्यटन हट-नुमा होटल, आवाजाही हेतु ट्रेवल सेवा, लोक कला-लोक फिल्म और संस्कृति उद्योग, विंड उर्जा उद्योग, सोलर उर्जा उद्योग, घराट बिजली उद्योग (1-10 मेगावाट), सूचना एवं सौफ्टवेयर उद्योग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर रोजगार परिसर स्थापित किया जाये और नियुक्ति न्याय पंचायत परीछेत्र से ही करके जवाब देहि तै की जाये | किसी भी प्रकार के भ्रटाचार और लापरवाही में सेवा समाप्त और सम्पति जब्त करने तक का कढा प्रावधान किया जाये|


4. वित्तीय सुविधोँ का मॉडल
बैंक, सहकारी बैंक, ऐ.टी.एम., जीवन बीमा, चिकिस्ता बिमा, साधारण बीमा आदि का समायोजन कर प्रत्येक प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर वित्तीय परिसर तैयार किया जाये| 

5. खेल का मॉडल
कबडी, गिली-डंडा, पंच-पथरी, खो-खो, फुटबाल, बालीबाल, हाकी, क्रिकेट, बेड-मिन्टन, कुश्ती, बाक्सिंग, टेनिस, स्विमिंग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर खेल परिसर बनाया जाये| 

6. आवास का मॉडल
उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारियों को मूलभूत सुविधा न मिलने के कारण हमेशा जनता को उसका फल भुगतना पड़ता है और कर्मचारी भी तनाव में रहते हैं जिस कारण सरकार सम्पूर्ण उत्तराखंड में शिक्षा, चिकित्सा आदि धराशाई हो गई है और सरकार नयें नयें प्रयोग कर रही है मगर कोई सफलता सरकार को नहीं मिल रही है | सरकार पी.पी.पी. मोड लागू कर रही है | पी.पी.पी. मोड में आम जनता का शोषण और कर्मचारियों का शोषण होना सुनिश्चित है और जिससे पी.पी.पी. मोड के दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं | कर्मचारियों को मूलभूत सुविधायें मिलेंगी तो वो अपने परिवारों सहित दुरस्त से दुरस्त छेत्रों में अपनी तनावमुक्त सेवा देंगे जिसके लिए कर्मचारी आवास, छात्र/छात्रा आवास एवं आवासीय कालोनी प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर बनाई जाये और सभी कर्मचारीयों की जवाबदेही तै की जाये|

7. सड़क और निर्माण का मॉडल
सड़क मूलभूल आवश्यकता है मगर सड़क निर्माण में किसी भी सूरत में विस्फोटकों का इस्तमाल न हो| सड़क निर्माण में स्टोन कटर तकनीक का स्तमाल किया जाये साथ ही काटी गई सड़क का मलबा किसी भी सूरत में पहाड़ों से नीचे न गिराया जाये| मलवा नीचे आने के कारण नदी का प्रवाह बाधित करता है और जहाँ नदी नहीं होती है वहां पेड़-पोधों को नुकशान करता है | सड़क कटान का मलवा जहाँ भरान की आवश्यकता है वहां भेजा जाये ताकि कृषि भूमि की मिटटी को सुरक्षित रखा जा सके | प्रत्येक न्याय पंचायत माडलों को दूसरी न्याय पंचायत माडल तक सड़क मार्ग से जोड़ा जाये| सड़क निर्माण "रोड़ मैपिंग" कर बनाई जायें| 


8. बन, बाग़-बगीचे, बागवानी और खेती का चकबंदी कर बने दूरगामी मॉडल 
बन विभाग ने तत्काल मुनाफे के लिए चीड़ के पेड़ों को लगाया था, चीड़ के पेड़ों की जड़ें गहरी नहीं जाती हैं जिस कारण न तो वो मिटटी को बांधे रख पाते हैं और न ही चीड़ के पेड़ों के नीचे कोई पौधे पनप पाते हैं| इतना ही नहीं जंगलों में आग लगने का खतरा सबसे अधिक चीड़ की पत्तियों से होता है और हर साल आग लगने के कारण जंगलों में न जाने कितने पेड़-पौधे और जीव-जंतु इसका शिकार बनते हैं | अब ये स्थिति है की चीड़ के पेड़ों को लगाने की भी आवश्यकता नहीं होती है चीड़ के फल पेड़ में ही पक जाते हैं और दूर-दूर तक चीड़ का बीज हवा के साथ खेतों में पहुँच जाता है जिस कारण चीड़ का पेड़ कहीं भी जम जाता है| चीड़ के पेड़ पर्यावरण के लिए विनाशक बन गए हैं इसे फैलने से रोकना होगा | दूरगामी लाभ-दायक और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने वाले फलदार पेड़ों को न सिर्फ बाग़ बगीचों में लगाना होगा बल्कि जंगलों में जंगली जानवरों को भरपूर खाना मिले इसलिये वहां भी लगाना होगा| बन विभाग, फल्संरक्षण, बन-निगम और कृषि विभाग को पर्यावरण और जीव-जन्तुओं को ध्यान में रखकर बनों का विकास करना होगा | 

भूस्खलन को रोकने और पानी के श्रोतों को जिन्दा रखने हेतु एकमात्र साधन है वृक्षारोपण और दूब घास का रोपण ताकि मिटटी को बांधा जा सके| उत्तराखंड में जगह-जगह बिखरी खेती की चकबंदी की जाये व नदियों के पानी को ऊपरी हिस्से में पहुंचाया जाये साथ ही बरसाती पानी को रोकने का प्रबंध करके असिंचित भूमि पर फलदार वृक्षों, बागवानी व खेती की जाये ताकि पर्यावरणीय संतुलित रोजगार खड़ा किया जा सके |

9. प्रत्येक गाँव बने पर्यावरण एवं रोजगार प्रदाता 
उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जिसका 65% भू-भाग बन छेत्र में आता है हिमालयी राज्यों पर पूरे देश की जीवन डोर टिकी है यदि ये सुरक्षित नहीं रहे, यदि यहाँ अत्यधिक मानव दखल हुवा, यदि यहाँ बिजली परियोजनायें बनेंगी, यदि यहाँ विस्फोटों का इस्तमाल हुवा, यदि यहाँ की प्रकृति के साथ समन्वय बनाने वाले मूलनिवासियों का प्लायन हुवा, यदि यहाँ पूँजिपति और बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त हुई? तो जीवन डोर कट जाएगी| सरकार पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु उत्तराखंड के हर मूलनिवासी को अपने ही गाँव को हराभरा रखने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर नियुक्त करे ताकि गाँव के बेरोजगार युवाओं को आजीविका के लिए गाँव में ही रोजगार मिल जाये और पर्यावरण संतुलन भी बना रहे| 



10. आपदा एवं सामाजिक सुरक्षा और सहायता का मॉडल
उत्तराखंड की भोगोलिक दृष्टि अलग-अलग है बाहरी ब्यक्ति को गाँव गाँव की जानकारी सम्भव नहीं है जिस कारण वो न तो सुरक्षा मुहया करवा पायेंगे और न ही किसी आपदा में सहायक होंगे इसके लिए जिससे ऐसे समय में भारी चूक का होना लाजमी है उत्तराखंड के अन्दर प्रांतीय रक्षक दल, होम गार्ड, एन.सी.सी.कैडेट, युवक मंगल दल, महिला मंगल दल, एस.एस.बी. द्वारा ट्रेंड गुरिल्लाओं की काफी संख्या पहले से मौजूद है और ये सभी स्थानीय निवासी होने के साथ-साथ भोगोलिक परिस्थति से भी अवगत हैं सरकार इन्हें और सक्षम बनाने हेतु एन.डी.आर.एफ. के माध्यम से कड़ा प्रशिक्षण दिलवाए और न्याय पंचायत स्तर पर स्टेट डिजास्टर एंड रिलीफ फोर्स के साथ-साथ नागरिक सुरक्षा और सहायता फोर्स के रूप में तैयार करवाये|


इसके साथ ही सरकार हिमालयी राज्य उत्तराखंड का पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु बाहरी लोगों द्वारा बसागत रोकने के लिए भूमि की खरीद-फरोखत पर रोक लगाये, जल बिजली परियोजनाओं की जगह विंड उर्जा, सोलर उर्जा का विकल्प तैयार करे, निर्माण कार्यों में ब्लास्टों पर पूर्णत: रोक लगाये, अत्यधिक निगम, प्राधिकरण, विभाग, आयोग, निदेशालय आदि छोटे से राज्य उत्तराखंड पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ा रहे हैं, इनको सीमित कर समायोजित किया जाये| सम्पूर्ण उत्तराखंड को इको-सेंसटिव जोन के की तर्ज पर विकसित किया जाए और आजीविका के लिए केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग की जाये| 
अंत में हिमालय के बारे में इतना ही कहेंगे हिमालय है तो ग्लेशियर हैं, ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं, नदियाँ हैं तो पेड़ हैं, पेड़ हैं तो आक्सीजन है, आक्सीजन है तो जीवन है और ये सब इस धरती इस हिमालय की बदौलत है | हम इन्सान छोड़ते भी साँस हैं तो उसमे भी जहरीली गैस छोड़ते हैं| 

स:धन्यवाद|

निवेदक: हिमालय बचाओ आन्दोलन |

सम्पर्क: 
भार्गव चन्दोला 
(हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी एवं प्रवक्ता, आप आपदा प्रबंधन समिति)
1, राजराजेश्वरी विहार, लोवर नथनपुर, पोस्ट आफिस नेहरुग्राम, देहरादून-248 001
मोबाइल: 09411155139, Email: bhargavachandola@gmail.com

मानवता से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है


मानवता से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है 

मित्रों चंद राजनीतिक और धार्मिक आडम्बरी अपना स्व:हित साधने के लिए दो लोगों के आपसी झगड़े को धार्मिक रंग देने का काम करते हैं और लोगों को आपस में लड़वाते-मरवाते हैं | इतिहास गवाह है इससे केवल उनका ही भला होता है व् इसकी भेंट केवल मासूम लोग,बच्चे,महिलाएं व् जानवर होते हैं यही आजकल मुजफरनगर में भी हो रहा है जिसकी आग धीरे-धीरे आस पास के छेत्रों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने का काम राजनीतिक पार्टी, मीडिया और धार्मिक आडम्बरी कर रहे हैं... आपको तै करें आपको मानव बन कर जीवन जीना है या आडम्बरी बन कर मासूमों का उत्पीड़न करना और करवाना है....


धर्म और जाती तब तक जिन्दा है जब तक मानव स्वस्थ है| बीमार पढ़ने पर हिंदु हो या मुसलमान, सिख हो या इसाई, ब्राह्मण हो या ठाकुर या कोई अन्य जाती तब उसे केवल मानव धर्म याद आता है तब उसे व उसके तीमारदारों को केवल उस ब्लड ग्रुप के खून की याद आती है जो उसके प्राण बचा सकता है|

“नगाड़े खामोश क्यों हैं”


“नगाड़े खामोश क्यों हैं”

गिर्दा आज हमारे बीच नहीं हैं देहरादून के टाउनहाल में उनके जाने के तीसरे वर्ष पर उनको याद किया गया दो बजे से आठ कब बज गए कुछ पता ही नहीं चला गिर्दा को याद करते हुवे गिर्दा की संगी-साथी राजीव लोचन शाह जी, शमशेर सिंह बिष्ट जी, शेखर पाठक जी, जनकवि अतुल जी, नरेन्द्र सिंह नेगी जी, कमला पन्त जी, इन्द्रेश जी, रानू बिष्ट-ओबेराय जी, त्रेपन सिंह जी, समीर जी, प्रवीन कुमार भट्ट जी, पांगती जी आदि ने गिर्दा को छ: घंटे तक जिस बक-बक के साथ हमारे बीच उपस्थित किया वो काबिले तारीफ था गिर्दा के बारे में जो नहीं भी जानते थे इन लोगों ने उनको गिर्दा के बारे में विस्तार से बता कर सराबोर कर दिया| मैं ब्यक्तिगत तौर पर इस कार्यकर्म के संयोजनकर्ताओं का आभार प्रकट करता हूँ की उन्होंने न सिर्फ गिर्दा को याद करने के लिए हमे एकत्रित किया बल्कि गिर्दा को याद करते करते आई.सी.यू. में जा चुके उत्तराखंड प्रदेश के लिए गहन चिंतन करने के लिए सभी को मजबूर भी किया…

आज पता लगा जब शेखर पाठक जी ने बताया गिर्दा केवल मुहँ से कविता नहीं गाते थे, केवल मुहं से गीत नहीं गाते थे… गिर्दा शरीर के अंग-अंग से गाते उछलते अठखेलियाँ करते हुवे गाते थे… काश उत्तराखंड के लोकसेवकों और निठल्ले विधायक,मंत्रियों ने कभी गिर्दा, नरेन्द्र सिंह नेगी के ही गीतों का संज्ञान ले लिया होता तो आज ये उत्तराखंड… खंड…खंड नहीं होता… आज उत्तराखंड की धरती पर मासूम जिन्दगीयां बेमौत नहीं मारी जाती… ये पहाड़ यूं न दरकते, ये ग्लेशियर यूं समाप्त होने के कगार पर न पहुंचते, ये नदियाँ विलुप्त होने के कगार पर न पहुँचती….

उत्तराखंड की जनता का दुर्भाग्य है की उनकी आँख में मोतियाबिंद पड़ा हुवा है अपने बीच नरेन्द्र सिंह नेगी, शेखरपाठक, शमशेर सिंह बिष्ट, राजीव लोचन शाह, समर भंडारी, इन्द्रेश मैखुरी, हरीश आर्य, अरण्य रंजन, अनिल स्वामी, मुन्ना सिंह चौहान, चन्द्रशेखर करगेती, दीप पाठक, कमला पन्त, पी.सी.तिवारी, भार्गव चन्दोला* आदि प्रकृति प्रेमी, दूरदृष्टि रखने वाले, इमानदार मगर संसाधनविहीन लोगों के होते हुवे.. भ्रष्ट कांग्रसी या भाजपाई देल्ही के आदेश पर चलने वाले भ्रष्ट,अदूरदृष्टि, तिजोरी भरने वाले नेताओं को विधानसभा या लोकसभा भेजती है तो उत्तराखंड का ये हाल तो होना निश्चित ही था… जनता अपनी आखों के मोतियाबिंद का आप्रेशन करवाकर सही लोगों को विधानसभा भेज देती तो उत्तराखंड की ये दुर्गति न होती मगर…

क्या जनता की जिम्मेदारी नहीं बनती है की वो खोजे सही लोगों को और तै करे हम अपने छेत्र से दलाल को नहीं सही ब्यक्ति को चुनकर भेजेंगे… ?

कब आएगी आम जनता में ये जागरूकता ?

गिर्दा तुम तो चले गए हमारे दिलों में रच बस गए … अब कौन इनका मोतियाबिंद का आपरेशन करेगा ? कौन इनको वोट का मोल देश का मोल इस माटी का मोल बता कर उदेलित करेगा की जागो उठो ओ मेरे लाल…. गिर्दा कौन इन्हें जगायेगा ? गिर्दा कौन इन्हें जगायेगा…? अंत तक पहुंचते पहुंचते मन उदास हो गया था गले में गिर्दा पर लिखी गई एक श्रोता की कविता गिर्दा को याद करते करते गले में रुन्दन का भाव पैदा कर गई…गिर्दा तुम आज अगर हमारे बीच साक्षात् होते तो शायद हम तुम्हें याद न करते न इतना भाव मन में होता…. गिर्दा तुम गए तो दिलों में बस गए मन में बस गए….

भारत में एमरजेंसी के दौरान… चारों तरफ दमन हो रहा था हालात अंधेर नगरी चौपट राजा वाले थे… उसी दौरान गिर्दा ने “नगाड़े खामोश क्यों हैं” के मंच से ये पंक्तियाँ न सिर्फ अपने होंठों से कही बल्कि गिर्दा जैसे उनके संगी साथी बताते हैं अपने शरीर के अंग-अंग से कहीं…

                कि राख की बात क्या ?
                कि राख की करामत क्या ?
                कि राख का मनुष्य लाख का भी है,
                
                कि राख का मनुष्य खाख का भी है,

                कि राख को भी खाख और खाख को भी लाख

                राख का मनुष्य कर सकता है…

                कि सोता है तो गनेलों की तरह,

                कि जागता है तो ब्रह्माण्ड हिला देता है…


उस दौर में गिर्दा ने इन पंक्तियों को गाकर सोये मनुष्य को जागने को मजबूर कर दिया और उन्हें जगाकर जोश पैदा कर दिया|

आज वही परिस्थति है हमारे देश और हमारे राज्य उत्तराखंड की है आज भी “अंधेर नगरी चौपट राजा” ही हो रखा है| फिर से नगाड़ों का बजने का समय आ गया है… फिर से मनुष्य का जागने का समय आ गया है… फिर से खाक को लाख करने का समय आ गया है..

*अपना नाम इसलिए जोड़ रहा हूँ उनठलुओं से तो ठीक ही निकलूंगा |

हिन्दी दिवस 14 सितम्बर... कुछ अंग्रेजी टटपूंजिए बड़ा घमंड दिखाते हैं कि उन्हें अंग्रेजी भाषा आती है उन्हें लगता है वो विश्व के सबसे ज्ञानी इन्सान हो गए हैं|

हिन्दी दिवस 14 सितम्बर... कुछ अंग्रेजी टटपूंजिए बड़ा घमंड दिखाते हैं कि उन्हें अंग्रेजी भाषा आती है उन्हें लगता है वो विश्व के सबसे ज्ञानी इन्सान हो गए हैं| मूरखों विजय बहुगुणा, सोनियां गाँधी, मनमोहन सिंह, पी.चिदम्बरम जैसे लोगों को भी हिन्दी उतनी ही आती है जितनी हमें अंग्रेजी अगर उन्हें हिन्दी का ज्ञान होता तो देश का यूँ बंठाधार न होता खैर अच्छा लग रहा है हिन्दी दिवस मना कर | वैसे मैं तो रोज ही हिन्दी दिवस मनाता हूँ जब रोज ही हिन्दी गढ़वाली में बात करनी होती है तो दिवस भी तो रोज ही मनाऊंगा | सबको हिन्दी दिवस की बधाई जिनको नहीं आती है उनके लिए अफ़सोस |

"प्यारे साथियों बचपन से अपने बच्चों को प्रकृति प्रेमी बनायें संवेदनहीन मानव मशीन नहीं"

हिमालय बचाओ आन्दोलन पद यात्रा 3-18 मई, 2013 के दौरान सौड़ू गाँव में
प्रकृति की खुबसूरत सौगात गाय का बच्चा भार्गव चन्दोला को स्नेह करते हुवे 

 

"प्यारे साथियों बचपन से अपने बच्चों को प्रकृति प्रेमी बनायें 

संवेदनहीन मानव मशीन नहीं" 


आज देश के सबसे ज्यादा पढ़ाकू किताबी ज्ञान रखने वाले जो बचपन से ही पढ़ाकू होते हैं लोकसेवक, डाक्टर, इंजिनियर बन बैठे हैं उन्होंने अपने घर पर दिन रात मेहनत की और फिर वो इस मुकाम पर पहुंचे हैं| उन्होंने अपनी पढाई के बोझ के कारण मोहल्ले में शादी व्याह में ज्यादा भाग नहीं लिया| वो कभी किसी सामाजिक सरोकारों में भाग नहीं लेते हैं| किसी का स्वास्थ्य ख़राब हो जाता है तो उसको न तो हॉस्पिटल ले जाते हैं और न ही कभी उसकी तीमारदारी करते हैं| मोहल्ले पड़ोस में कोई मर भी जाये तो कभी लकड़ी देने या कान्धा देने भी नहीं जाते हैं| मोहल्ले पड़ोस तो क्या वो अपने रिश्तेदारों से भी ज्यादा मतलब नहीं रखते हैं| उन्होंने कभी किसी रोते बच्चे को नहीं चुप करवाया होता है उनको नहीं पता होता है किसी चेहरे पर मुश्कान कैसे लाई जा सकती है | उनको तो पता होता है किताबी ज्ञान| कैसे पढ़ना है कितना पढ़ना है ताकि वो क्लास में प्रथम आ सकें अच्छी नौकरी पा सकें और वो इसमें सफल भी हो जाते हैं| 


फिर जब बात होती है उसी समाज के बीच जाकर काम करने की तो वो अपने आप को उनसे बिलकुल अलग समझने लगते हैं | खुद को उन सबसे श्रेष्ठ समझने लगते हैं | उनको उस समाज से कोई लगाव नहीं होता है | होगा भी कहाँ से ? वो तो उनको बचपन से ही कीड़े मकोड़े समझते थे वो जो करते थे उनके लिए वो सब फालतू के काम होते थे | उनके अन्दर की मानव संवेदना तो बचपन में ही मर जाती है या मार दी जाती है | अगर उनकी ये संवेदना बचपन से उनके साथ रहती तो आज भारत की जनता खुशहाल होती, भारत में कुपोषण नहीं होता, किसान आत्म हत्या नहीं करता, सरकारी शिक्षा, चिकित्सा बेहतर होती पूंजीपति और माफियाराज न होता मगर अफ़सोस ऐसा हो न सका|

आम जनता लोकसेवकों, डाक्टरों, इंजीनियरों को तैयार करवाने से लेकर उनके वेतन सुविधाओं के लिए जितना कर चुकाती है उसका उनको प्रतिफल जरुर मिलता अगर इनके अन्दर मानव संवेदना होती इनको उनका दर्द होता ये केवल पैसा कमाने और राज करने वाले शासक नहीं बल्कि सेवक बनकर सेवा करते| मानव मूल्यों को समझते प्रकृति के मूल्यों को समझते|

मेरा सभी माताओं बहनों भाईयों मित्रों से निवेदन है आप अपने बच्चे को संवेदनशील मानव कल्याण और प्रकृति के मूल्यों को समझाते हुए दिखाते हुवे उनको भागीदारी करवाते हुवे बढ़ा करें और एक मानव तैयार करें.... संवेदनहीन मानव नहीं...

प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा में ही मानव कल्याण है|

हिमालय बचाओ आन्दोलन पद यात्रा 3-18 मई, 2013 के दौरान हेंवल नदी में पद यात्री
पूजा भट्ट को भाई दीप पाठक पीठ में रखकर नदी पार करवाते हुवे 

जन्मदिन के अवसर पर बेटी सुदीक्षा से प्रकृति को सुरक्षित रखने हेतु
पेड़ लगवाते हुवे भार्गव चन्दोला एवं पूजा चन्दोला 

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

लोकतंत्र के लिये लोकसभा का बचना जरुरी


लोकतंत्र के लिये लोकसभा का बचना जरुरी 

आजकल देश की सर्वोच्च संस्था लोक सभा में राजनीतिक पार्टियों द्वारा राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा जा रहा है राज्य सभा सदस्य चुनने का आधार क्या है इसका कोई मानक न होना लोकतंत्र का गला घोंटकर आम जनमानस के साथ छलावा है| उत्तरप्रदेश में जनता द्वारा पूर्णरूप से बी.एस.पी. को नकारे जाने के बावजूद बसपा सुप्रीमों का राज्य सभा जाना जिसका प्रमाण है| उत्तराखंड में अभी हुए विधानसभा चुनाव में विधायक प्रतियाशी श्री मयुख सिंह माहरा को जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद विधानसभा चुनाव में हारने के बाद भी उन्हें राज्यसभा सांसद बनाना एक प्रकार से लोकतंत्र की गला घोंटने के समान ही है और जनता के मुँह पर भ्रष्टाचारियों का तमाचा है जो दर्शाता है की उन से ऊपर कोई नहीं है क्या यही लोकतंत्र है ? लोकतंत्र की परिभाषा शायद राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों को सीखने की आवश्यकता है जिस प्रकार से प्राइमरी स्कूल में हर दिन राष्ट्रगान होता था और प्रतिज्ञा ली जाती थी कि मैं भारतवासी हूँ, सभी भारतवासी मेरे भाई-बहन हैं..... ठीक उसी प्रकार हमारे देश के नेताओं और उनको सलाह देने वाले ब्यूरोक्रेट्स को हर दिन उनके कर्तब्यों के पाठ पढ़ाने कि सख्त जरुरत है| राज्यसभा सांसद का चयन होने के लिये लोकतंत्र का पूरा ज्ञान होना अनिवार्य होना चाहिए देश का सर्वोच्च सदन जहाँ आर्थिक, कूटनीतिक देश से जुड़े अहम फैसले होने हैं जहाँ देश के भविष्य के लिये कानून पास किये जाते हैं ऐसी संस्था के सदस्य निष्ठावान, देशप्रेमी, ईमानदार, प्रतिबद्ध, समाज से प्रेम करने वाला, राष्ट्रीय एवं अंतरास्ट्रीय परिवेश की पूर्ण जानकारी रखने वाला, नीतिगत फैसले लेने वाला ब्यक्ति ही होना चाहिए| देश के सर्वोच्च सदन को ब्यापार खाना या कोई फैशन रैम्प न बनाया जाए जहाँ आप क्रिकेटरों, फ़िल्मी सितारों, उधोगपतिओं, माफियाओं आदि को भरकर वाहवाही लूटें और अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिये देश को अंधेरे की ओर धकेल दें इस देश पर हर देशवासी का उतना ही अधिकार है जितना एक सांसद का होता है| अभी-अभी सचिन तेंदुलकर और रेखा को राज्य सभा सांसद बनाया गया| आम जनता के लिये ये कदम स्वागत योग्य है | आम जनता के लिये अगर सचिन क्रिकेट का भगवान हैं तो वो राज्य सभा के लिये भी भगवान साबित होंगे| आम जनता के लिये ग्लैमरस क्वीन् रेखा फ़िल्मी जगत की क्वीन् थीं तो वो राज्य सभा में भी क्वीन् ही रहेंगी मगर ये आम जनता है जो केवल विज्ञापन के आधार पर अपनी सोच विकसित करती है कौन सी चाकलेट खानी है, कौन सी गाड़ी चलानी है ये आम जनता नहीं आज के दौर के क्रिकेटर और फ़िल्मी सितारे तय करते हैं वो जो कहते हैं आम जनता उसी को पहनती है वो आम जनता को जो सपने दिखाते हैं आम जनता उसी को देखने लगती है मगर ये आम जनता ये नहीं जानती है की उनका वो चहेता क्रिकेटर या फ़िल्मी सितारा जिस जीवन को उसे जीने जिस सपने को उसे देखने के लिये कह रहा है या दिखा रहा है जिस सोच को वो उसे दे रहा है उसके लिए उसने भारी-भरकम धनराशि ली है ठीक उसी प्रकार जब कांग्रेस पार्टी ने अपना किला डहता पाया तो उसे बचाने के लिये ग्लैमरस क्वीन् और क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले दिगाजों को राज्यसभा के लिए नामित कर दिया है अब ये दिग्गज किस आधार पर देश की संसद की गरिमा बढ़ाएंगे ये अवश्य सोचने का विषय है इतना जरुर है की अभी तक इन्होने केवल अपने प्रोफेशन से ही प्यार किया है और उसी के लिये ये जाने भी जाते हैं देश के किसी विषय या देश से जुड़े किसी भी मसले पर आज तक तो उनकी कोई प्रतिक्रिया अभी तक न तो देखने को मिली है और न ही इन्होने किसी मुद्दे पर पहल की है| सरकार का कहना है या भारत के सपूत हैं इनका सम्मान होना चाहिए था तो हमने इनका सम्मान किया है| सचिन तेंदुलकर और रेखा जैसी हस्तियों का अवश्य सम्मान होना चाहिए जिसके लिये सरकार पुरुस्कार स्वरूप उन्हें भारत रत्न से लेकर अनेकों पुरुस्कार से समानित कर सकती थी और वही करना भी चाहिए था| लोकसभा भेजना जहाँ की पूरे देश की सुरक्षा, सामंजस्य, खाद्द्यान, विदेश नीति, वित्त, कूटनीति, कानून आदि सभी तय होते हैं वहाँ भेजकर सम्मान नहीं देश को बिना सोचे-समझे असुरक्षित हाथों में सौंपना जैसा है|

क्या जिस प्रकार सचिन क्रिकेट खेलते हैं वो टेनिस या फुटबाल खेल सकते हैं ? क्या जिस प्रकार रेखा ने अपने अभिनय से फ़िल्मी दुनियां को मदहोश किया है वो उसी प्रकार से अंतरिक्ष या इसरो में सफल हो सकती हैं ? नहीं! सरकार केवल अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिये ग्लैमर को बढ़ावा दे रही है जिससे देश को कोई फ़ायदा दीखता नजर नहीं आ रहा है ऐसे में देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में कैसे जायेगा देश के बुद्धिजीवियों को इस पर गंभीर विचार करना होगा | भारत महान देश है और इसकी संप्रभुता बचाये रखने के लिये विशेषग्यता जरुरी है तभी हम सही कदम बढ़ा सकते हैं| 

"हवस पैसे की हो या शरीर की दोनों ही एक दिन खुद को खा जाते हैं"


"हवस पैसे की हो या शरीर की दोनों ही एक दिन खुद को खा जाते हैं"


डी.एस.पी. साहब की बेटी सुधा पटवाल जी को आखिर किस चीज की कमी हो सकती थी मगर ये हवस ही थी जो उनको सभ्य प्राणी होने के पथ से भटका गई डी.एस.पी. साहब ने बहुत पहले ही उनसे सारे रिश्ते ख़तम कर दिये थे आखिर क्या बीती होगी उस बाप के दिल पर बेटी से रिश्ता ख़तम करते हुवे और क्या बीती होगी जब उस बाप ने सुना होगा उसकी बेटी अब एक हत्या के आरोप में जेल जा चुकी है... स्वर्गीय युधवीर भाई को भी ये हवस ही मौत के मुह में ले गई विधायक मंत्रीयों के साथ रहकर ऊँचे ऊँचे सपने देखना और उनको पूरा करने के लिए रास्तों से भटकना न सिर्फ अपने लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए विनाश की गाथा लिख जाता है... मंत्री हरक सिंह रावत जी के बारे में क्या कहना जिस चिकित्सा शिक्षा का जिम्मा उनके पास है उसमें दलाली के ये डाक्टर जनता के लिए वरदान साबित होंगे या जल्लाद ये खुली आँखों से हर कोई समझ लेना चाहिए... ऊपर से मंत्री जी का कहना की सी.बी.आई. जांच की कोई जरुरत नहीं है ... दाल में काला न होकर दाल ही काली होने की पुष्टि करता है... महान हैं मंत्री जी और महान है मंत्री जी को विधानसभा भेजने वाली जनता.... मैं तो इतना कहूँगा मित्रों विलाशिता की चाहत ही घर के विनाश का कारण बनती है... हवस छोड़ें और जीवन को जीवन की तरह जियें हवस वो माया है जो कभी पुरी नहीं हो सकती है जितना ईमानदारी से सही रास्ते पर चलकर कमा सकते हो उसमें खुश रहें... तो न सिर्फ आपका बल्कि आपके अपनों का जीवन और सम्मान सुरक्षित रहेगा बल्कि आप से जुड़ा समस्त मानव जीवन और ये प्रक्रति भी सुरक्षित होगी|

"कालेज राजनीति की गद्दारी से बनती हैं भ्रष्ट राज्य व् भारत सरकार"

"कालेज राजनीति की गद्दारी से बनती हैं भ्रष्ट राज्य व् भारत सरकार"



मित्रों छात्र नेता का काम होना चाहिए कि वो कालेज की मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त करवायें, पठन-पाठन की गुणवत्ता को बनवायें, शिक्षा-शिक्षण कार्य सुचारू रूप से चलवायें, गरीब छात्रों हेतु निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवायें उनकी मदद करवाएं, कालेज हो या कालेज के बाहर कालेज छात्रों को नशे से दूर करवायें, सभी छात्रों में भाईचारा और एक दुसरे का सम्मान पैदा करवायें व् सभी बच्चों के साथ-साथ अपना उज्जवल भविष्य बनायें|

मगर ये क्या छात्र नेता और छात्र तो बिलकुल ही दिशाहीन होते जा रहे हैं ड्रग, शराब, लड़ाई-झगड़ा, छेड़खानी, अवैध वसूली, चेन स्नेचिंग, सुपारी, हत्या आदि ये छात्रों की आम बात हो गई है | मेरे युवा साथियों आखिर आप कौन से मार्ग पर जा रहे हैं ? आप ही देश का भविष्य हैं और आप ही रास्ता भटकने लगेंगे तो देश तो गर्त में जायेगा ही जायेगा | मैं जानता हूँ कि आपको माहोल ही ऐसा मिला है मगर क्या हमें उसे बदलना नहीं चाहिए ?

हम पीछे देख रहे थे जब उत्तराखंड की विधानसभा 2012 का चुनाव हुवा था | उस दौरान ज्यादातर विधायक प्रतियासी अपनी रैली के लिए छात्रों को उनकी बाइक में 200 रु. का पट्रोल डलवा रहे थे, शराब-कवाब खिलवा रहे थे, होटलों में, गेस्टहाउसों में मौज करवा रहे थे, कालोनियों में शराब की पेटी और पैसे बटवा रहे थे और ये सिलसिला लगातार एक माह तक चलता रहा | हमें तब बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था, क्योंकि उसी दौरान करोड़ों की संख्या में भ्रस्टाचार के खिलाफ ज्यादातर छात्र अन्ना जी के समर्थन में सड़कों पर उतरे थे| बड़ी पार्टी के विधायक प्रतियाशियों ने दो-दो, तीन-तीन करोड़ रूपए खर्च किये होंगे क्या कभी आपने सोचा है, आखिर उनके पास वो पैसा आया कहाँ से था ? क्या वो किसी राजा महाराजा के परिवारों से थे ? या वो उधोगपतियों के परिवारों से थे? नहीं | उनमें से ज्यादातर ने हमारे पैसे हमारा खजाना लूट कर हमें ही कुछ हिस्सा बाँटने का काम किया | क्या जो काम उन्होंने किया हमें उनके ही मार्ग दर्शन पर चलना चाहिए? अगर नहीं| 

                                 संकल्प करो ए युवाओं, जो मंजिल अपनी पानी है, 
                                 जो इस देश के काम न आये, वो बेकार जवानी है|
                                 ये स्वेत वस्त्र अर्चन लायेंगे, तुम्हें राह से भटकायेंगे, 
                                 नशा पिलाकर ये तुमको, पल में अपना कर जायेंगे| 
                                 नशा नहीं खुशहाली होगी,अब ये बात इन्हें समझानी है,
                                 संकल्प करो ए युवाओं जो मंजिल अपनी पानी है|


तो मित्रों संकल्प लें कि "मैं इस देश, प्रकृति व् अपने भविष्य को बचाने के लिए ऐसे नेताओं की कठपुतली नहीं बनूँगी/बनूँगा, देश की जनता से गद्दारी कर कमाई गई दौलत की शराब, मुर्गा, पैट्रोल, भीख नहीं लूंगी/लूँगा, मैं ऐसे गद्दारों के खिलाफ वोट व् प्रचार करुँगी/करूँगा जिन्होंने जनता व् देश के साथ भ्रस्टाचार करके गद्दारी की है मैं ऐसे भ्रस्ट नेताओं को वोट करके अपने देश, अपने देश की जनता व् खुद अपने भविष्य के साथ गद्दारी नहीं करुँगी/करूँगा"

नोट: मित्रों कुछ कड़वी बात जरुर बुरी लगती हैं मगर सोच कर देखें सच यही है अब आपको तै करना है कि देश के साथ गद्दारी करनी है या देशभक्त बन कर देश को बचाना है फैसला आपका लेना है | 

निवेदक: आम आदमी पार्टी उत्तराखंड(AAP) व् छात्र युवा संघर्ष समिति (CYSS), उत्तराखंड | 

आम आदमी पार्टी उत्तराखंड एवं छात्र युवा संघर्ष समिति से जुड़ने के लिए सम्पर्क करें: 
देहरादून: सोमेश बुडाकोटी (8791320398), आर्यन कोठियाल (9012968842) 

हरि सिमरन सिंह(8755960120), मयंक नैथानी(8266000109), सुशील सैनी (9639378198), सुनीता सिंह(9897602143), संजय भट्ट(ज़ि.सं. 9897914034), राजेश बहुगुणा(9058179121), सुरेश नेगी(8006033369), ओंकार भाटिया (9639005108), 

देहरादून एवं समस्त उत्तराखंड: भार्गव चन्दोला, आप प्र.प्र., (9411155139), रनवीर सिंह चौधरी,प्र.को., (8272089003)

हल्द्वानी एवं समस्त उत्तराखंड: हरीश आर्य,प्र.सं., (9897030253), उमेश तिवारी (9412419909)

चमोली: हरेन्द्र बिष्ट (9634346264)

विकासनगर/प्रेमनगर: भास्कर चुग (9358604649) 

श्रीनगर/पौड़ी: टीकाराम उनियाल, 9760694482

ऋषिकेश: आशुतोष जुगराण, 9837255893



कालेज राजनीति की गद्दारी से बनती हैं भ्रष्ट राज्य व् भारत सरकार



जो दल सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं वो वोट पाने का अधिकारी नहीं

जो दल सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं वो वोट पाने का अधिकारी नहीं 

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

बेटा: माँ माँ मुझे बहुत भूख लगी है खुछ खाने को दो न ?



बेटा: माँ माँ मुझे बहुत भूख लगी है खुछ खाने को दो न ?

माँ: मेरा प्यारा बेटा होगा बेटा मुझे पड़ोस की आंटी के यहाँ कीर्तन में जाना है तू जाकर दुकान से अपने लिए कुछ खाने के लिए ले आ ये ले 10 रु.... 
बेटा: लाला जी से अंकल जी अंकल जी एक पांच रु. वाला टाइगर बिस्कुट और एक सिगरेट देना...बेटा घर आता है मम्मी कीर्तन में वो मजे से बिस्कुट के साथ सिगरेट के गोले उड़ाता है....
दुसरे दिन: बेटा माँ माँ आज कीर्तन किसके यहाँ है ?
माँ: बेटा आज कीर्तन नहीं किट्टी पार्टी है |
बेटा: माँ मुझे भूख लगी है 10 रू. दो न आप तो किट्टी पार्टी में जा रही हो मैं दुकान से अपने लिए एक बिस्कुट का पैकेट ले आऊँगा..
माँ: बेटे से मेरा प्यारा बेटा ले बेटा मेरे पीछे सैतानी मत करना हाँ..
बेटा दुकान: जाता है अंकल एक बिस्कुट और एक सिगरेट देना...
.
.

ये सिलसिला जब शुरू होता है तो माँ को अक्सर तब पता चलता है जब बेटा नशे का आदि हो चुका होता है और तब माँ कितना भी समझा ले मार ले तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.... लाला जिसे केवल अपने माल बिकने से और पैसे कमाने से मतलब होता है वो कोई सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभाता है... सचेत रहें बच्चे नदी की धार की तरह होते हैं अगर आपने ध्यान नहीं दिया तो कहीं भी रास्ता बना सकते हैं कीर्तन, किट्टी, सत्संग से आपको कुछ मिले न मिले आप अपने घर में एक मुजरिम जरुर पैदा कर देंगे जो न सिर्फ आपके लिए बल्कि समाज के लिए भी घातक हो सकता है... अक्सर हम तब उचित कदम उठाने का प्रयास करते हैं जब सब कुछ हाथ से निकल जाता है सिगरेट मात्र शुरुवात है धीरे-धीरे ड्रग,चेन स्नेचिंग,चोरी,हत्या,बलात्कार,छेड़खानी आदि का मार्ग बनता जाता है| 

गरीब देश के प्रेसिडेंट का देहरादून दौरा ब्यवस्थाओं से कमाई का मौका


गरीब देश के प्रेसिडेंट का देहरादून दौरा ब्यवस्थाओं से कमाई का मौका

कालेज राजनीति की गद्दारी से बनती है भ्रष्ट राज्य व् भारत सरकार

कालेज राजनीति की गद्दारी से बनती हैं भ्रष्ट राज्य व् भारत सरकार

ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं - नदियाँ हैं तो जल, जंगल, पेड़, खेती, वायु है व् इसी से मानव एवं समस्त प्राणी जीवन है

ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं - नदियाँ हैं तो जल, जंगल, पेड़, खेती, वायु है व् इसी से मानव एवं समस्त प्राणी जीवन है

ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं
नदियाँ हैं तो जल, जंगल, खेती, वायु है व् इसी से
मानव एवं समस्त प्राणी जीवन है |

उत्तराखंड में 16-17 तारीख जून, 2013 में भयानक प्राकृतिक आपदा (मानव जनित) आयी जिसमें न सिर्फ उत्तराखंड के बल्कि पूरे भारत के 15 हज़ार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान इस त्रासदी में गँवा दी भले सरकारी आंकड़ा कुछ भी कहता हो मगर हकीकत यही है| प्राकृतिक आपदा तब से लगातार जारी है हर रोज कहीं न कहीं बादल फटना आम बात हो गई है जिससे रोज आम जनता अपनी जान माल गँवा रही हैं|
अब सवाल उठता है आखिर ये प्राकृतिक आपदा आई क्यों?
          भारत के हिमालयी राज्यों के बर्फ के ग्लेशियर न सिर्फ हिमालयी राज्यों के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए जीवन देने का काम करते हैं| इन ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियाँ भारत के पर्यावरण संतुलन को बनाने का काम करती हैं ये हैं तो सम्पूर्ण भारत की कृषि, बन, पशु-पक्षी, जीव-जंतु हैं अगर इनका ही अस्तित्व मिट गया तो सम्पूर्ण भारत का अस्तित्व मिट जायेगा| क्या हम ऐसा चाहते हैं

         गौर से सोचिये जब भारत आजाद हुवा था तो भारत की जनसँख्या मात्र 30 करोड़ थी जो आज बढ़ कर 130 करोड़ हो चुकी है और ये भी सरकारी आंकड़ा है हकीकत भगवान जाने क्योंकि यहाँ बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल आदि देशों के भी करोड़ों लोग अवैध रूप से रहते हैं| हमारे देश में आज़ादी के समय से ही भुखमरी चल रही थी जबकि तब जनसँख्या मात्र 30 करोड़ थी तो आज 130 करोड़ की जनता के लिए खाद्यान कहाँ पैदा होता होगा? कहाँ वो रहते होंगे? क्या वो खाते होंगे ? कहाँ वो चलते होंगे ? कैसे वो चलते होंगे ? क्या हमने कभी इस ओर गौर किया ?
       जनसँख्या के साथ-साथ क्या नहीं बढ़ा ? भवन, गाड़िया, सड़क, कारखाने, होटल, मॉल, दुकान, रेल, जहाज, मोबाइल, टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, पंखे, बल्ब, प्लास्टिक, लोहा, कांच, कोयला, तेल, गैस, चूल्हा, चिमनी, कम्प्यूटर, फैक्स, फोटो स्टेट, बिजली परियोजना, मोटर, बैट्री, टाइल, ईंट, सीमेंट, पेंट, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च, आश्रम खिलोने आदि ? ये सब बढ़ा है और बेतहाशा बढ़ा है| नहीं बढ़ी तो जहाँ इनको स्थापित किया जाता है वो जमीन वो पृथ्वी और न ही वो बढ़ सकती है| जिसका हमे गहनता से संज्ञान लेना होगा|
         भौतिकतावाद को पूरा करने में केवल जमीन का इस्तमाल हुआ है हम ये भूल गए की जितनी जनसँख्या बढ़ेगी उतनी ही भौतिकवादी वस्तुवें बढ़ेंगी और उसके लिए जमीन की आवश्यकता पड़ेगी जिस कारण लगातार कंक्रीट के जंगल खड़े होते जा रहे हैं जो इस धरती के लिए और यहाँ के पर्यावरण संतुलन के लिए विनाशक साबित हो रहे हैं| जिसके परिणाम अब आये दिन दिख रहे हैं| क्या हम इस धरती को समाप्त करने की ओर कदम नहीं बढ़ा रहे ?
        हिन्दू हो या मुसलमान सिख हो या इसाई, पूंजीपति हो या गरीब इन सबका अस्तित्व तभी है जब ये धरती होगी, जब इसका पर्यावरण सुरक्षित होगा, जब यहाँ पीने का पानी, खाद्यान, और साँस लेने के लिए शुद्ध हवा होगी| और ऐसा तभी संभव है जब यहाँ सिमित जनसँख्या, सिमित भौतिक उत्पादन होगा


हिमालयी राज्यों का चाहिए पर्यावरणीय संतुलित नव-र्निर्माण 
          उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य के साथ-साथ अत्यधिक संवेदनशील अन्तराष्ट्रीय सीमांत प्रदेश भी है इसकी अनदेखी भारत के लिए न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी घातक है| उत्तराखंड में पूंजीपतियों और ठेकेदारों ने सरकार की लापरवाही और भ्रस्टाचार के कारण प्रकृति का घोर अनैतिक दोहन किया है| बारूदी विस्फोटों से सड़कें, भवन और सुरंग का निर्माण पहाड़ी जिलों के लिए विनाशक साबित हो रही हैं पहाड़ छलनी होकर दरक रहे हैं जिस कारण लगातार बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएँ आम बात हो गई हैं और इसी का नतीजा है आज हमे इतनी बड़ी त्रासदी को झेलना पड़ा है| स्थानीय लोगों के पलायन के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया है वो जानते हैं कैसे वो अपने खेत, खलियान और जल-जंगल को सुरक्षित रख सकते हैं | जब तक वो अपने जंगलों की सुरक्षा खुद करते थे तो वो जंगल सुरक्षित थे वो रात-रात भर जंगलों में आग भुझाने का काम करते थे| मगर पूंजीपतियों की जब से इन पहाड़ों, इन नदियों, इन तीर्थ स्थलों और इन पर्यटक स्थलों पर नजर लगी और उन्होंने इसका दोहन शुरू किया तो परिणाम आपके सामने है|

बदलना होगा विकास का मोडल 
          उत्तराखंड की सरकारों ने जिसे विकास का रथ माना था वो आज न सिर्फ उत्तराखंड के लिए बल्कि देश के लिए भी विनाशक साबित हो रहा है| बिजली परियोजना, डैम, डैमों का मलबा, अत्याधिक् मानव दखल, अत्यधिक तीर्थ यात्री, अत्यधिक पर्यटक, नदी का अतिक्रमण, अत्यधिक गाड़ियाँ, अत्यधिक होटल, अत्यधिक धर्मशालायें और उनसे निकलने वाला प्रदुषण, ये सब इस हिमालय के लिए विनाशक हैं और ग्लेशियरों का अस्तित्व ख़तम कर रहे हैं जो सम्पूर्ण भारत के लिये विनाशक हो रहा है | हिमालयी राज्य उत्तराखंड में फलोत्पादन, कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटी, फूलोत्पदन, दुग्ध उत्पादन, भेड़ पालन, मधु-मक्खी पालन, सॉफ्टवेयर पार्क, सौर उर्जा, विंड उर्जा आदि की अपार सम्भावनाएं हैं जिनसे प्लायन रोकने, रोजगार देने के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाया जा सकता है|

          उत्तराखंड को प्लायन मुक्त बनाने और हिमालय को बचाने के लिए योजना कारगर और दूरगामी होनी चाहिए| जहाँ मूलभूत सुविधाओं की कहीं कोई कमी न हो व् जब मूलभूत सुविधाएँ होंगी तभी रोजगार की अपार संभावनाओं का लाभ उत्तराखंड की आम जनता उठा सकती है
          शिक्षा की गुणवत्ता में भारी कमी के कारण सबसे अधिक पलायन पहाड़ों से हुवा है इस बात को मैंने "हिमालय बचाओ आन्दोलन" के 16 दिन की "गाँव चलो समस्या जानो" के 100 गांवों के पैदल यात्रा के दौरान स्वयं अपनी आँखों से देखा है जो कि हमने अभी-अभी 3 मई से 18 मई, 2013 में की थी|

"पर्यावरण संतुलित एवं सम्पूर्ण उत्तराखण्ड के नवनिर्माण हेतु विकास का माडल":- उत्तराखंड सरकार के पास इस समय प्रयाप्त बजट है जिससे उत्तराखंड का नव-निर्माण प्राकृतिक संतुलन के साथ-साथ जनहितकारी भी किया जा सकता है चूँकि उत्तराखंड के पहाड़ों में छोटे-छोटे गाँव हैं और संख्या कम है इसलिए न्याय पंचायत स्तर पर मूलभूत सुविधाओं और रोजगार का मॉडल तैयार करना होगा |
        उत्तराखंड में कुल 670 न्याय पंचायतें हैं जिसके अंतर्गत 15 से 20 ग्राम पंचायतें आती हैं| सरकार को प्रत्येक न्याय पंचायत में एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा ताकि स्थानीय जनता को पर्यावरणीय संतुलित सुविधाएँ और रोजगार के साधन उपलब्ध हो सकें इसके लिए निम्न 10 बिन्दुवों पर अमल करना होगा:
1. शिक्षा का मॉडल :- स्कूली शिक्षा, कृषि शिक्षा, योग एवं संस्कृति शिक्षा, आयुर्वेदिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, प्रोधोगिकी शिक्षा, तकनिकी शिक्षा, आपदा प्रबंधन शिक्षा, आत्म रक्षा शिक्षा, एवं खेल शिक्षा का समायोजन किया जाये और प्रदेश में जगह जगह स्थापित किये गए अनावश्यक स्कूल/कालेजों आदि को बंद कर आदर्श शिक्षा परिसर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर तैयार किया जाये|
2. चिकित्सा का मॉडल:- एलोपेथी, आयुर्वेदिक, होमोपेथी का समायोजन कर आधुनिक सुविधा यूक्त चिकित्सालय प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित किया जाये|
3. रोजगार का मॉडल:- स्थानीय उत्पादन उद्योग, शब्जी उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, फलोत्पादन (सेब, अखरोट, माल्टा, आडू, खुमानी, बुरांश, पुलम, चोलू, हथ-करघा उद्योग, नाशपाती, आम, लीची, अमरुद, हिंसर, बुरांश, काफल, अन्नार, टिमरू आदि हेतु जलवायु मौजूद), दुग्ध डेरी, मधु-पालन, काष्ठ-कला, कंडी उद्योग, भेड़ पालन, साहसिक एवं प्राकृतिक खेल, योग-ध्यान केंद्र, बिक्री केंद्र, पर्यटन हट-नुमा होटल, आवाजाही हेतु ट्रेवल सेवा, लोक कला-लोक फिल्म और संस्कृति उद्योग, विंड उर्जा उद्योग, सोलर उर्जा उद्योग, घराट बिजली उद्योग (1-10 मेगावाट), सूचना एवं सौफ्टवेयर उद्योग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर रोजगार परिसर स्थापित किया जाये और नियुक्ति न्याय पंचायत परीछेत्र से ही करके जवाब देहि तै की जाये| किसी भी प्रकार के भ्रटाचार और लापरवाही में सेवा समाप्त और सम्पति जब्त करने तक का कढा प्रावधान किया जाये|

4. वित्तीय सुविधोँ का मॉडल: बैंक, सहकारी बैंक, ऐ.टी.एम., जीवन बीमा, चिकिस्ता बिमा, साधारण बीमा आदि का समायोजन कर प्रत्येक प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर वित्तीय परिसर तैयार किया जाये

5. खेल का मॉडल:- कबडी, गिली-डंडा, पंच-पथरी, खो-खो, फुटबाल, बालीबाल, हाकी, क्रिकेट, बेड-मिन्टन, कुश्ती, बाक्सिंग, टेनिस, स्विमिंग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर खेल परिसर बनाया जाये

6. आवास का मॉडल:- उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारियों को मूलभूत सुविधा न मिलने के कारण हमेशा जनता को उसका फल भुगतना पड़ता है और कर्मचारी भी तनाव में रहते हैं जिस कारण सरकार सम्पूर्ण उत्तराखंड में शिक्षा, चिकित्सा आदि धराशाई हो गई है और सरकार नयें नयें प्रयोग कर रही है मगर कोई सफलता सरकार को नहीं मिल रही है | सरकार पी.पी.पी. मोड लागू कर रही है | पी.पी.पी. मोड में आम जनता का शोषण और कर्मचारियों का शोषण होना सुनिश्चित है और जिससे पी.पी.पी. मोड के दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं | कर्मचारियों को मूलभूत सुविधायें मिलेंगी तो वो अपने परिवारों सहित दुरस्त से दुरस्त छेत्रों में अपनी तनावमुक्त सेवा देंगे जिसके लिए कर्मचारी आवास, छात्र/छात्रा आवास एवं आवासीय कालोनी प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर बनाई जाये और सभी कर्मचारीयों की जवाबदेही तै की जाये|

7. सड़क और निर्माण का मॉडल:- सड़क मूलभूल आवश्यकता है मगर सड़क निर्माण रोड़ मैपिंग कर बनाई जायें और निर्माण में किसी भी सूरत में विस्फोटकों का इस्तमाल न हो| सड़क निर्माण में स्टोन कटर तकनीक का स्तमाल किया जाये साथ ही काटी गई सड़क का मलबा किसी भी सूरत में पहाड़ों से नीचे न गिराया जाये| मलवा नीचे आने के कारण नदी का प्रवाह बाधित करता है और जहाँ नदी नहीं होती है वहां पेड़-पोधों को नुकशान करता है | सड़क कटान का मलवा जहाँ भरान की आवश्यकता है वहां भेजा जाये ताकि कृषि भूमि की मिटटी को सुरक्षित रखा जा सके | प्रत्येक न्याय पंचायत माडलों को दूसरी न्याय पंचायत माडल तक सड़क मार्ग से जोड़ा जाये

 8. बन, बाग़-बगीचे, बागवानी और खेती का चकबंदी कर बने दूरगामी मॉडल:- बन विभाग ने तत्काल मुनाफे के लिए चीड़ के पेड़ों को लगाया था, चीड़ के पेड़ों की जड़ें गहरी नहीं जाती हैं जिस कारण न तो वो मिटटी को बांधे रख पाते हैं और न ही चीड़ के पेड़ों के नीचे कोई पौधे पनप पाते हैं| इतना ही नहीं जंगलों में आग लगने का खतरा सबसे अधिक चीड़ की पत्तियों से होता है और हर साल आग लगने के कारण जंगलों में न जाने कितने पेड़-पौधे और जीव-जंतु इसका शिकार बनते हैं | अब ये स्थिति है की चीड़ के पेड़ों को लगाने की भी आवश्यकता नहीं होती है चीड़ के फल पेड़ में ही पक जाते हैं और दूर-दूर तक चीड़ का बीज हवा के साथ खेतों में पहुँच जाता है जिस कारण चीड़ का पेड़ कहीं भी जम जाता है| चीड़ के पेड़ पर्यावरण के लिए विनाशक बन गए हैं इसे फैलने से रोकना होगा | दूरगामी लाभ-दायक और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने वाले फलदार पेड़ों को न सिर्फ बाग़ बगीचों में लगाना होगा बल्कि जंगलों में जंगली जानवरों को भरपूर खाना मिले इसलिये वहां भी लगाना होगा| बन विभाग, फल्संरक्षण, बन-निगम और कृषि विभाग को पर्यावरण और जीव-जन्तुओं को ध्यान में रखकर बनों का विकास करना होगा
      भूस्खलन को रोकने और पानी के श्रोतों को जिन्दा रखने हेतु एकमात्र साधन है वृक्षारोपण और दूब घास का रोपण किया जाये ताकि दूब घास और पेड़ों की जड़ें मिटटी को बांध कर भूस्खलन होने से रोक सके| 
    उत्तराखंड की आम जनता की जगह-जगह बिखरी खेती की चकबंदी की जाये व नदियों के पानी को ऊपरी हिस्से में पहुंचाया जाये साथ ही बरसाती पानी को रोकने का प्रबंध करके असिंचित भूमि पर फलदार वृक्षों, बागवानी खेती की जाये ताकि पर्यावरणीय संतुलित रोजगार खड़ा किया जा सके|

9. प्रत्येक गाँव बने पर्यावरण एवं रोजगार प्रदाता:- उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जिसका 65% भू-भाग बन छेत्र में आता है हिमालयी राज्यों पर पूरे देश की जीवन डोर टिकी है यदि ये सुरक्षित नहीं रहे, यदि यहाँ अत्यधिक मानव दखल हुवा, यदि यहाँ बिजली परियोजनायें बनेंगी, यदि यहाँ विस्फोटों का इस्तमाल हुवा, यदि यहाँ की प्रकृति के साथ समन्वय बनाने वाले मूलनिवासियों का प्लायन हुवा, यदि यहाँ पूँजिपति और बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त हुई? तो जीवन डोर कट जाएगी| सरकार पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु उत्तराखंड के हर मूलनिवासी को अपने ही गाँव को हराभरा रखने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर नियुक्त करे ताकि गाँव के बेरोजगार युवाओं को आजीविका के लिए गाँव में ही रोजगार मिल जाये और पर्यावरण संतुलन भी बना रहे| 
10. आपदा एवं सामाजिक सुरक्षा और सहायता का मॉडल:- उत्तराखंड की भोगोलिक दृष्टि अलग-अलग है बाहरी ब्यक्ति को गाँव गाँव की जानकारी सम्भव नहीं है जिस कारण वो न तो सुरक्षा मुहया करवा पायेंगे और न ही किसी आपदा में सहायक होंगे इसके लिए जिससे ऐसे समय में भारी चूक का होना लाजमी है उत्तराखंड के अन्दर प्रांतीय रक्षक दल, होम गार्ड, एन.सी.सी.कैडेट, युवक मंगल दल, महिला मंगल दल, एस.एस.बी. द्वारा ट्रेंड गुरिल्लाओं की काफी संख्या पहले से मौजूद है और ये सभी स्थानीय निवासी होने के साथ-साथ भोगोलिक परिस्थति से भी अवगत हैं सरकार इन्हें और सक्षम बनाने हेतु एन.डी.आर.एफ. के माध्यम से कड़ा प्रशिक्षण दिलवाए और न्याय पंचायत स्तर पर स्टेट डिजास्टर एंड रिलीफ फोर्स के साथ-साथ नागरिक सुरक्षा और सहायता फोर्स के रूप में तैयार करवाये|

       इसके साथ ही सरकार हिमालयी राज्य उत्तराखंड का पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु बाहरी लोगों द्वारा बसागत रोकने के लिए भूमि की खरीद-फरोखत पर रोक लगाये, जल बिजली परियोजनाओं की जगह विंड उर्जा, सोलर उर्जा का विकल्प तैयार करे, निर्माण कार्यों में ब्लास्टों पर पूर्णत: रोक लगाये, अत्यधिक निगम, प्राधिकरण, विभाग, आयोग, निदेशालय आदि छोटे से राज्य उत्तराखंड पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ा रहे हैं, इनको सीमित कर समायोजित किया जाये| सम्पूर्ण उत्तराखंड को इको-सेंसटिव जोन के की तर्ज पर विकसित किया जाए और आजीविका के लिए केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग की जाये| 

     अंत में हिमालय के बारे में इतना ही कहूँगा हिमालय है तो ग्लेशियर हैं, ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं, नदियाँ हैं तो पेड़ हैं, पेड़ हैं तो आक्सीजन है, आक्सीजन है तो जीवन है और ये सब इस धरती इस हिमालय की बदौलत है | हम इन्सान छोड़ते भी साँस हैं तो उसमे भी जहरीली गैस छोड़ते हैं


भार्गव चन्दोला
(हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी)
1, राजराजेश्वरी विहार, लोवर नथनपुरपोस्ट आफिस नेहरुग्राम, देहरादून-248 001
सम्पर्क: 09411155139, 
Email: bhargavachandola@gmail.combhargavachandola@gmail.com